सरकार को सत्ता से बेदखल करने का एकमात्र विकल्प
बिहार सरकार के खिलाफ धरना-प्रदर्शन देना ये उचित है, लेकिन इनके खिलाफ आर-पार की लड़ाई लड़ना ये बहुत ही कठिन है, क्योंकि सरकार के पास बहुत सारा संसाधन मौजूद है, जिससे कि चाहकर भी हम सब पार नहीं पा सकते हैं।
कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं से समझिए:-
1. अगर बात अंग्रेज से लोहा लेने की रही तो उस वक्त हमलोगों के साथ- साथ सभी देशवासी पीड़ित थे और उनके पास कोई विकल्प तक नहीं था, लेकिन हमलोगों के पास एक विकल्प भी है और उस एक चुनावी अधिकार वाली विकल्प से इनको सत्ता से बेदखल आराम से किया जा सकता है....
2. उस वक्त एक से बढ़कर एक कवि/लेखक हुआ करते थे जो कि तानाशाही रवैया को लेकर लिखा करते थे, जिससे कि लोगों में आग की ज्वाला उठती थी, लेकिन अब सरकार के सभी चमचे हो चुके हैं या फिर किसी न किसी एक पार्टी का समर्थक जरूर हैं।
3. उस वक्त शांतिपूर्ण आंदोलन किया जाता था तो ज्यादा दिक्कत नहीं होती थी, लेकिन अब आपके पास हथियार नहीं भी है फिर भी आप सरकार के आँखों मे चुभेंगे ही...
4. पहले लोग ही नेता के रूप में चुनते थे, लेकिन अब खुद अपने को नेता मानते हैं और मान बैठे हुए हैं। जिससे कि समाज के प्रति स्वार्थ रवैया को देखा जा सकता है।
5. उस वक्त भी विरोध हुआ करता था और विरोध को दबाने के लिए 'काला कानून' था और आज भी है, लेकिन अब सामाजिक अंतर आ चुका है...
पहले के लोग खाने और जीने की बात करते थे Career की बात लोगों के मन में हावी नहीं था, लेकिन अब है जिस कारण लोगों में एक डर-सा चिंता बना हुआ रहता है।
6. जयप्रकाश नारायण जी का छात्र आंदोलन के बाद सभी पार्टी के लोग अलर्ट हो गया था कि अब देश में ऐसा आंदोलन नहीं होने देंगे। इनलोगों ने एक सुनियोजित तरीके से हमलोगों को सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से कमजोर करते हुए चले आ रहे हैं।
ये सभी चीजों का समाधान एक ही है इन सभी तथाकथित सामंतवादों को जड़ से उखाड़ फेंकिए यही एक मात्र और आखिरी विकल्प है दूसरा कुछ भी नहीं....
अब लोग नए विकल्प की तलाश में है, क्योंकि जब इन्हें सत्ता से बेदखल करेगी तो लोग अब किसे सत्ता सौपेंगी..?
ये सवाल लोगों के मन में अभी भी है, लेकिन अब उसका भी विकल्प बिहार के लोगों के पास मौजूद है।
अब बात करते हैं बिहार की सबसे पढ़ी-लिखी नेत्री की :-
बिहार की राजनीति में एक उभरते हुए चेहरे के रूप में पुष्पम प्रिया चौधरी जी की बात की जा रही है और फिलहाल वह अपने सोशल मीडिया से सरकार को घेरते हुए हर हमेशा नजर आती है। हालाँकि वह सिर्फ सोशल मीडिया पर नहीं बल्कि जमीनी हकीकत पर भी मौजूद हैं, लेकिन उनके मुताबिक ऐसा हर बार कहा जाता है कि मेरी जमीनी कार्यशैली को मीडिया में जगह नहीं मिल पाती है, क्योंकि सरकार ने मीडिया के माध्यम से सेंसर लगा रखी है।
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आइए अब देखते हैं वर्त्तमान मौजूद हालात पर पुष्पम प्रिया चौधरी जी के कुछ TWEETS को..... |
"आख़िर UPSC की परीक्षा कैसे साफ़-सुथरी-सफल हो जाती हैं? BPSC में आख़िर कौन-सा वायरस डाला है लालू-नीतीश ने? तीन दशक में एक भी परीक्षा बिना झंझट के, साफ़-सुथरी इसने ली है? आख़िर पीढ़ी-दर-पीढ़ी परीक्षार्थियों का जीवन यह संस्था कब तक बर्बाद करेगी? युवाओं के मानसिक शोषण का कोई अंत है?"
"बोधगया का ‘मगध विश्वविद्यालय’! ज्ञान की धरती! अज्ञानी नीतीश कुमार ‘इंटरनेशनल’ बनने के लिए यहां फ़ोटो खिंचाने जाते हैं। पर वे विश्वविद्यालय का शासन देखने नहीं जाते। करोड़ों लेकर वीसी की नियुक्ति की, बात ख़त्म! पढ़ाई-परीक्षा क्यों होगी? बिहार में बुद्ध मुस्कुराते नहीं, रोते हैं।"
“तुम हमें नौकरी मत दो, हम तुम्हें जीतने नहीं देंगे।” शिक्षक अभ्यर्थियों ने, यूनिवर्सिटी से थक चुके छात्रों ने, BPSC-SSC से प्रताड़ित विद्यार्थियों ने और बेरोज़गार युवाओं ने लालू-नीतीश से बदला चुकाना शुरू कर दिया है। यह प्रतिशोध अच्छा है।

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